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जय जय श्यामाश्याम

     बिरहन की पाती 1
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एक विरहणी श्याम सुंदर को पाती लिखने बैठ जाती है। उसकी सखियों की दशा भी तो उसके समान हुई है। जिस दिन से श्यामसुंदर से विरह हुआ है इनका जीवन तो जैसे निष्प्राण हुआ पड़ा है। सभी इस बाँवरी की और देख रही हैं कि यह क्या करने वाली है। दशा तो सबकी जल बिन मीन समान हुई पड़ी है। एक दूसरे से अपने हृदय का हाल कह लेती हैं और रो लेती हैं। नित्य एक दूसरे को रुलाना और फिर सांत्वना देकर चुप करवाना ही इनकी दिनचर्या है। कभी श्यामसुंदर कृष्णचन्द्र के प्रेम का , कभी उनके रूप का बखान तो कभी उनकी निष्ठुरता देखना यही इनका नित्य प्रति कार्य है।

   इस बाँवरी के हाथ में कलम और स्याही देख सभी आश्चर्य चकित हो रही हैं कि ये अनपढ़ गंवार पढ़ना लिखना तो जानती ही नहीं, परन्तु जिद किये बैठी है कि अपने प्रियतम को पत्र लिखेगी। देखते ही देखते अपना आँचल एक और से फाड़ लेती है और उस पर ही पाती लिखने का सोचती है। इसकी दशा देख तो सखियाँ रो रोकर बेहाल हो रही हैं परंतु यह तो कलम स्याही लेकर पाती लिखने को उतावली है। हा श्यामसुंदर ! कैसा प्रेम है तुम्हारा। अब कौन इसे समझाए कौन धीरज धराये सभी एक सी ही दशा में व्याकुल हुई बैठी हैं। यह बाँवरी क्या लिखे , इस अनपढ़ गंवार ने क्या कभी लिखना पढ़ना सीखा है। उस वस्त्र के टुकड़े को हाथ में लिए बैठी है। नयनोँ से निरन्तर अश्रु प्रवाहित हो रहे हैं जो उस पाती पर गिरते जा रहे हैं।

पिय सों भेजूँ सखी पाती नैनन नीर ही स्याही करूँ
बिन प्रियतम क्षण क्षण अकुलाउँ कैसो सखी मैं धीर धरूँ
पिय बिन कैसे जियूँ क्षण क्षण विरह अग्न ही जरूँ
बाँवरी होय रहूँ कछु ना सुहावै मुख ते तेरो नाम धरूँ
पिय पिय रटू पिय प्राण मेरो जल बिन मीन जैसो मरूँ
कितने बरस पिय बिन बीते बिरहन अकुलाय कबहुँ पिय वरूँ

  प्रियतम के बिना क्षण क्षण की पीड़ा असहनीय हो चुकी है। इस प्रकार प्रतीत होता है कि इस देह में प्राण भी यदि हैं तो क्यों हैं।

बिरह पीर जरी न जावै
मग जोवत बीती रे उमरिया बाँवरी रहे अकुलावै
कोऊ श्याम सों दीजौ सँदेसा क्षण एक न जावै
बिरह की रात अति भारी नैनन निंदिया न आवै
खान पान की सुधि बिसरी कछु नाँहिं मोहे भावै
मोहन पीर हरो अबहुँ मेरी बाँवरी मनुहार लगावै

   अश्रुओं से भरा हुआ यह वस्त्र का टुकड़ा ही इस बाँवरी की पाती है। जो पीड़ा शब्दों में व्यक्त न हो सकेगी वह अश्रु सब कह देंगे। इस विरहणी के लिए यही मूक पाती है जिसे यह श्यामसुंदर को देने वाली है। सहसा बाँवरी दौड़ पड़ती है और सखियाँ इसके पीछे जाती हैं कि यह बेसुध हो कहीं कुछ कर न बैठे। देखती हैं इस बाँवरी ने अपनी यह पाती यमुना जल में प्रवाहित करदी है जैसे श्यामसुंदर यमुना के तट पर ही इसकी पाती की प्रतीक्षा कर रहे हैं । बाँवरी की इस दशा पर सखियाँ और रो देती हैं परंतु इसे संतोष हो रहा है कि इसकी पाती इसके जीवनधन इसके प्राण नाथ ने स्वीकार कर ली है। करेंगें ही क्योंकि उनको प्रेम जो है ,शेष वही जानें ।

क्रमशः

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