अपनो बिरद सम्भारो

अपनो बिरद सम्भारो नाथ मोहे अपनी शरण बैठावो
क्षण न बिसारुं तुमको नाथा, मेरी ऐसी लग्न लगावो
तुम बिन ठौर नहीं कित जाऊँ , अपनो चरण मेरो सीस धरावो
व्याकुल मन अति रुदन करे मेरो , करुणा प्रेम बरसावो
होऊँ पतित अधम चाहे जन्म सों , आपहुँ नाय 
बिसरावो
शान्त करो नाथ मेरो भटकन , मोहे नाम डोर पकरावो

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