प्रेम नेम कछु नाँहिं जानू
प्रेम नेह कछु नाँहिं जानू काहे जीवन होय
पिय सों बिछुरे कितनो दिन बीते बाँवरी जीवन खोय
पाथर होतो तो घस जातो हिय कौन धात को होय
नैन न रोवै क्षुधा न खोवे बाँवरी तोहे प्रेम न होय
झूठो सोर मचावत रहवे प्रीत न हिय माँहिं होय
जिन साँचो नेह कियो मोहन सों क्षण न बिछुरन होय
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