रे मनवा तोसे भजन न होवै

रे मनवा काहे तोसे भजन न होवै
भाँति भाँति की बात बनावे जगत को सदा रोवै
पर दोष चिन्तन करत रहे तू अपनो दोष न दीखे
कपटी कुटिल जन्म को कामी कीट होवे नरक सरीखे
कबहुँ तू हरिनाम रस लेवे क्यों सदा अपनी बड़ाई चाहवे
मुख माँहिं धरी चाण्डालिनी जिव्हा क्यों हरिनाम न गावे

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून