बिरह पीर जरी न जावे
बिरह पीर जरी न जावै
मग जोवत बीती रे उमरिया बाँवरी रहे अकुलावै
कोऊ गिरधर को दीजौ सँदेसा क्षण एक न जावै
बिरह की रात अति भारी नैनन निंदिया न आवै
खान पान की सुधि बिसरी कछु नाँहिं मोहे भावै
मोहन पीर हरो अबहुँ मेरी बाँवरी मनुहार लगावै
Comments
Post a Comment