हरिनाम की नैया

मो सम कौन पातकी नाथा , तुमसों कौन होवै पतित उद्धार
भव सिंधु डोलत मेरो नैया , हाथ पकर मेरो करो सम्भार
बलहीन को बल तुम्हीं बनो नाथा, निर्बल कैसो होय भवसिंधु पार
जन्म जन्म की भटकन नासे , खत्म होवै सब विषय विकार
नाम की नैया मोहे बैठावो , खेवत खेवत होय भव सों पार
नाम ही बने गति मति मेरो, नाम की ही दीजौ पतवार

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून