काहे मन चंचल होवै

काहे मन ऐसो चँचल होवै
हरिनाम माँहिं ध्यान धरे ना भव निद्रा माँहिं सोवै
स्वास स्वास पायो अमोलक हरिनाम बिना तू खोवै
अंतकाल अबहुँ निकट आवे खाली हाथ फिर रोवै
बाँवरी जन्म गमायो बिरथा तोसे हरिभजन न होवै
चँचल मन मेरो हर लो हरि जी  निष्ठुर तुम बिन कबहुँ न रोवै

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