कैसो कहूँ
कैसो कहूँ पिय देख्यो न ढिठाई
नाम न लीन्हा क्षण को तेरो ऐसो होय मेरो अधमाई
भव बन्धन माँहिं क्षण क्षण लौटूँ प्यारी लोक लोकाई
धिक धिक होवै तोहे बाँवरी क्षण क्षण दियो गमाई
भटकत रही जगत रस चाखे कोऊ नेह न हिय समाई
कौन सों मुख ते अबहुँ पुकारे आवो मिल जावो यदुराई
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