विधना काहे देह न छूटे

विधना काहे देह न छूटे
पिय सों बिछुरे जीवन कैसो मोहन मोसे रूठे
पिय को कैसो देयों उलाहनों हिय न नेह समावे
कोऊ सुख न पिय को दीन्हीं झूठी बतियाँ बनावे
एकहुँ स्वास न दीजौ विधना बाँवरी पिय सों नेह न कीन्हों
पिय विमुख कैसो होय जीवन मेरो अचरा पीर सों भर दीन्हों

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून