श्यामघन घनश्याम**

श्याम घन घनश्याम घन घन
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    बाँवरी आकाश में छाए श्याम मेघ देख गुनगुनाने लगती है श्याम घन घनश्याम घन घन ......। अहा ! कितनी शीतल समीर मन्द मन्द प्रवाहित हो रही है। बाँवरी तो अपनी धुन में मग्न है, जैसे ही यह शब्द उसकी स्वामिनी जु के कर्णपुट में प्रवेश करते हैं प्यारी जु भाव विभोर होने लगती है और पुनः गाने को कहती है। बाँवरी गाने लगती है श्याम घन ......... प्यारी जु श्यामसुंदर का नाम सुन उन्मादिनी हुई जा रही है और इस धुन पर नृत्य करने लगती है। श्याम घन घनश्याम ....... अपनी स्वामिनी को प्रसन्न देख बाँवरी और तन्मयता से गाने लगती है।

श्याम घन घनश्याम घन घन
घनन घन घन घनन घन घन

नाचत दोऊ दामिनी और घन
घनन घन घन घनन घन घन

बरसत रहे सखी प्रेम सुमन
घनन घन घन घनन घन घन

इस बेला में होवै मधुर मिलन
घनन घन घन घनन घन घन

रस बरस रहा होवै पुलकन
घनन घन घन घनन घन घन

प्रेम रस रह्यो भीज तन मन
घनन घन घन घनन घन घन

मन मयूर नाचत रहे छन छन
घनन घन घन घनन घन घन

श्याम घन घनश्याम घन घन
घनन घन घन घनन घन घन

  श्यामा जु वर्षा की छोटी छोटी बून्द का स्पर्श ही प्रियतम श्यामसुंदर का स्पर्श अनुभव कर रही है। श्याम वर्ण के मेघ में दामिनी की चमक देख अपने प्राण प्रियाप्रियतम का मिलन देख बाँवरी आनंद से भर पुनः पुनः गा रही है श्याम घन घनश्याम घन घन .......अपनी प्यारी जु का सुख वर्धन ही इसका सम्पूर्ण जीवन है। श्यामसुंदर भी प्यारी जु के नृत्य को देखते देखते प्यारी जु सँग नृत्य करने लगते हैं। प्रेम रस से उनके तन मन पगे हुए हैं । उनकी प्रसन्नता वर्धन हेतु मयूर भी सँग नृत्य कर रहे हैं। इस मधुर मिलन की बेला में कुछ है तो केवल प्रेम ..........
बाँवरी पुनः पुनः गाती जा रही है श्याम घन घनश्याम घन घन........ और उसके प्राण युगल प्रेम रस से आनन्दित हुए जा रहे हैं............

Comments

  1. आनन्द रस की पराकाष्ठा

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