मेरा इश्क़ मेरी इबादत

जब तक तेरे इश्क़ का एहसास नहीं था।
कोई सुकून मेरे दिल के पास नहीं था

सोचा था इश्क़ करके थोड़ी सी राहत होगी
एक तू पास होगा एक तेरी चाहत होगी

पर जब से इश्क़ हुआ है फिर भी सुकून नहीं है
हर दर्द मीठा लगता दिल मांगे क्यों नहीं है

जीनी है मुझे हर पल तेरे इश्क़ की मदहोशी
सुनते हो हर बात चाहे वो हो ख़ामोशी

अब चल पड़ा तेरी चाहत का सिलसिला है
जब से तू मिला है और तेरा इश्क़ मिला है

यूँ ही बनाये रखना मुझ पर नज़र ए करम अपना
तेरी मोहबतों को जीना बस एक मेरा सपना

ऐ मेरे मौला अब मुझे मेरे यार से मिला दे
फनाह हो जाए रूह उसमेँ ऐसी कोई सदा दे

उसमे फनाह होना ही मेरी ज़िन्दगी की चाहत
वही है इश्क़ मेरा वही है मेरी इबादत

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