इश्क़ की खुमारियां

छू लिया जो तुमने तो महक गयी मैं
इश्क़ तेरे में कुछ बहक गयी मैं

हो रही मुझे तेरे इश्क़ की खुमारियां
बढ़ रही क्यों रात दिन बेकरारियां

घुल रहे हो मुझ में तुम कुछ इस कदर
तू ही तू दिखे मुझे जाए नज़र जिधर

मौसम ए इश्क़ में मैंने जी लिया
मय तेरी को सांवरे अब मैंने पी लिया

तेरी ही चौखट पर अब जिंदगी मेरी
तुझको चाहना ही बस है बन्दगी मेरी

रख लो कदमों में ये रूह अब तेरी है
सांस सांस नाम तेरे हो गयी साहिब मेरी है

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