मुझे तुम पर

मुझे तुम पर ही यकीं है खुद पर यकीं नहीं है
है जैसा इश्क़ तेरा मेरा वैसा ही नहीं है

तेरा इश्क़ पाक कितना छूने से पाक करदे
उठती हुई हसरतें सब पल में ही ख़ाक करदे
एक तेरी हसरत ही और हसरत भी नहीं है
मुझे तुम पर........

तेरी चाहतें मुझे अब पीना सिखा रहीं हैं
मर मर के फिर से मुझको जीना सिखा रहीं हैं
ऐसी प्यास लग रही है जो कभी बुझी नहीं है
मुझे तुम पर........

तुझसे ही इश्क़ करके मुझे सज़दा करना आया
हसरतों पे मिटी थी अब तुझपे मरना आया
जो सुकून मुझे मिला अब ऐसा सुकूँ नहीं है
मुझे तुम पर........

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