तुम्हारा कान्हा
मैं कान्हा हूँ
सखी तेरे ही भीतर
तू मुझे सुनती है
महसूस करती है
देखती भी है
हर जगह
मेरा एहसास करती है
फिर
फिर
क्यों रोती है
क्यों मौन हो जाती है
मैं ही तो हूँ
तेरा कान्हा
बेहाल
कैसे हो जाओगे
तुम हो
हो ही नहीं
अब तुम नहीं हो
मैं ही हूँ
हसाने में
रुलाने में
रूठने में
मनाने में
तुम ?
तुम कहाँ हो
हर साँस पर मैंने ही
कब्जा कर रखा है
मैं ही हूँ
तुम्हारा कान्हा
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