हसरतें

जब इश्क़ हो जाये
महफिलें कहाँ भाती हैं
और तन्हाईयाँ प्यारे
इश्क़ की आग लगाती हैं

बहते हुए अश्क़ हैं हम
आँखों में नहीं रख पाओगे
नज़र से क्यों दूर हो साहिब
मेरी नज़र में कब आओगे

ना हो मुझे तेरे इश्क़ का नशा
जो चढे और उतर जाए
तुम बन जाओ हर साँस मेरी
जिसके बिन दम निकल जाए

इश्क़ में तू ही नहीं रहना
खुद को तू फनाह कर दे
हो जा उनकी वो तेरे हैं
हसरत सभी तबाह कर दे

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