प्रेम कर ले हरि से
प्रेम कर ले हरि से मनवा
पल पल उम्र तेरी बीत रही
हरि रस से तू भर ले जीवन
क्यों प्रेम गागर रीत रही
नाम ना लीन्हा भक्ति ना कीन्हीं
जीवन अपना क्यों व्यर्थ गवाया
रंग ले अपनी प्रेम चुनर को
क्यों है अपना रूप भुलाया
हार गया तू पल पल बन्दे
क्यों हाथों से जीत गयी
प्रेम कर ले.......
चुनर रंगा ले मीरा जैसी
रंग चढे फिर ना छूटे
प्रीत लगा ले हरि से ऐसी
माला का मणका ना छूटे
स्वास् स्वास् में याद हरि हों
क्यों ना जग की प्रीत गयी
प्रेम कर ले .......
तन तेरा माटी की ढेरी
माटी में ही मिल जायेगा
कौन घड़ी हो हरि मिल्न
कौन घड़ी चैन पायेगा
नाम हरि का सच्चा साथी
और ना सच्चा मीत कोई
प्रेम कर ले.......
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