आलि री
आलि री !या नन्दनन्दन ऐसो कठोर भयो
छाँड़ गयो वृन्दावन नगरो मथुरा वासी रह्यो
आलि री !......
नैन हमारो झर झर जावें
कौन विधि हिय पीर बुझावें
सब सखियन की पीर होय ऐसो
मुख से कछु नाय जात कह्यो
आलि री !......
नन्दनन्दन अब नन्दनन्दन नाय
जा बसे मथुरा वासी कहाए
गैया गोप गोपियाँ नित नित
विरह पीर में दग्ध भयो
आलि री !........
दशा किशोरी जू को कह्यो ना जाए
नयन भरे नित रहे मुर्छाये
कैसो वज्र पात ये कीन्हो
दर्द हियो को ना जात कह्यो
आलि री !.......
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