इश्क़ में दो कहाँ

इश्क़ में दो कहाँ जीते हैं लोग
इश्क़ तो दो को एक करता है
मैं नहीं हूँ है अब मुझमेँ यार मेरा
हर कोई उसको ही सज़दा करता है

वही बाक़ी रहे कभी मैं लौट ना आऊँ
जी ले मुझको वो या मैं उसे जी जाऊं
मुझको ऐतबार है उसपर फिर क्यों दिल डरता है
मैं नहीं हूँ........

इश्क़ के दौर में जीना अब मेरा ही नहीं
तुम ही रह लो अब ये मेरा बसेरा ही नहीं
नहीं तो ले जाओ जहाँ मेरा खुदा रहता है
मैं नहीं हूँ.......

लग गई है आग अब ये आज रोज़ बिखरेगी
दिल की कली अब तेरे इश्क़ में निखरेगी
तेरा इश्क़ ही जमीं को आसमान करता है
मैं नहीं हूँ.......

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