निकुंज रहस्य
एक दिन रतिमंजरी ललिता से बतियाए
निकुंज के रहस्य का सखी हमे भी दो बतलाए
हर वस्तु वहां की दिव्य है हर वस्तु है निर्मल
निकुंज की रज दिव्य है दिव्य है निकुंज का जल
पुलिन वहां सुहावत है मंगल ही मंगल चहुँ ओर
अद्भुत सुंदरता है ऋतुएँ सभी हैं मनोहर
पशुओं में भी प्रियता ही प्रियता
भूमि कणों में भी है निर्मलता
सखियों में उमंग है मञ्जरिओं में विन्रमता
हृदय में प्रेम है व्यव्हार में सबके आत्मीयता
भावना में सेवा है हर खेलि में है उल्लास
हर और आनंद ही आनंद का ही विलास
कठिनता कठोरता मलिनता का नहीं अस्तित्व
प्रेम प्रधान है सखी सब प्रेम के व्यक्तित्व
क्या रहस्य निकुंज का सुन सखी धर ध्यान
लाल लाडली का निज गृह लो इसे तुम मान
प्रिया प्रीतम के प्रेम अश्रु से ये हुआ है सिंचित
लाडली ने हर फूल कली को प्रेम से किया सुरक्षित
हमारी स्वामिनी श्री राधे हैं प्रेम की सागर
और श्याम प्यारे हमारे हैं रस की गागर
किशोरी मृदुल सहज हैं प्रेम की मूर्ति
लता कुञ्ज में रस सागर की करें प्रेम आपूर्ति
हर सखी हर मञ्जरी में अपना दिव्य प्रेम भरा है
सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी को प्रेम अधीन करा है
इस निकुंज बन में कर रहे प्रिया प्रियतम रास विहार
अनन्त कोटि के स्वामी ने प्रेम बस ऐश्वर्या दिया बिसार
भूल गए अपनी महिमा गौरव हंसे खेल रहे प्यारी साथ
जैसे एक छोटा बालक पकड़े अपनी परछाईं को हाथ
श्याम सुंदर हैं प्रेम के सिंधु हैं कितने उदार
अनन्त कोटि के स्वामी रहे लाडली तेरो चरण पखार
प्रेम करें प्यारी संग मेटे किशोरी के सब संताप
किशोरी दया करुणा अपनी से लेखनी लिखवाई आप
श्याम सुंदर आप ही कर रहे रसदान
प्रेम पिपासु श्याम ही आप करें रसपान
इस निकुंज में सखी प्रेम की सरिता बहती है
त्रिगुण ताप त्रिदोष नहीं जहां मेरी लाडली रहती है
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