बाँवरी कबहुँ जग छुटकारा होय

बाँवरी कबहुँ जग छुटकारा होय
विषय भोग परत अति गाढ़ी रही मूढ़े रोय
रही मूढ़े रोय तोहे जग वीथिन अति प्यारी
भजनहीन फिरै जगत माँहिं साँचो नाथ बिसारी
भाय रहै तोहे षडरस मूढ़े कबहुँ हरिनाम गावै
भव निद्रा कबहुँ त्यागे कबहुँ हरि रस पावै

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