वेणुनाद में विस्मृति

*वेणु नाद में विस्मृति*

प्रियतम ने पुनः वेणु नाद छेड़ दिया है।वेणु का एक एक रव एक ही नाम पुकार रहा जैसे प्यारी प्यारी ....... पया..........री.....। एक यही नाम तो रसराज के प्राणों में समाया हुआ है, यही उनकी तृषा , यही उनका भजन ,यही उनका जीवन , यही उनके प्राण, यही उनकी स्मृति, यही उनकी स्वास, यही बस यही नाम तो गूंज रहा उनके मन प्राण में। प्यारी प्यारी...........
पूरा निकलकर भी नहीं निकल जाता जैसे।असमर्थ हो चुके पुकारने को। पुकारते हुए भी पुकार ही नहीं पा रहे।सब प्रयत्न कर देख लिए, यह नाम पुकारते ही जैसे प्राण व्याकुल हो उठे ।बस एक ही नाम प्यारी प्यारी ..........।
पुकारते पुकारते वेणु को अधरों पर सजा लिए हैं। रस वर्षिणी का मधुर नामामृत जो स्वयम उनकी प्राण संजीवनी है एक एक रव से पी रहे हैं तथा पिला रहे हैं।ज्यूँ ज्यूँ वेणु नाद कर रही है सम्पूर्ण चर  चराचर को केवल एक ही नाम रस सिंचित कर रहा है प्यारी.......प्यारी.........पुकरते पुकारते श्यामसुंदर इस नाम मे ऐसे तन्मय हो जाते हैं , स्वयम को प्यारी जु ही अनुभव करते हैं।भीतर का उन्माद कहाँ सम्भलते बन रहा उनसे।अपने सम्पूर्ण प्राणों से एक ही नाम पुकार रहे हैं, यही नाम भीतर सुन रहे हैं। प्यारी प्यारी सुनते सुनते ऐसे तन्मय हुए की प्यारी ही हो गए।अधरों पर वेणु सजा पुकार रहे हैं और कर्ण पुटों से भीतर भर रहे हैं।नेत्र मूंद चुके श्रीश्याम सुंदर के। ऐसे प्राण भर भर पुकार रहे अपनी प्राणेश्वरी का नाम , यही नाम उनको उज्ज्वल उज्ज्वल और उज्ज्वल करता जा रहा है। राधा ......प्यारी........प्यारी........राधा
सम्पूर्ण रूप से इसी रससिन्धु में निमंजित हुए जा रहे हैं । प्यारी प्यारी .....बस प्यारी ही होते जा रहे हैं। पुकारते पुकारते स्वयम को प्यारी अनुभव कर रहे, रसनागर जो स्वयम को प्यारी ही बनाए बैठे हैं, प्यारी प्यारी भजते भजते एक क्षण को यह स्वयम से पूछ बैठे,.......मैं स्वयम को ही पुकारती जा रही हूँ । आह!!अपने प्राण प्रियतम के नाम को छोड़ आज मैं स्वयम को ही पुकारने लगी हूँ, प्रियतम की यह वेणु मेरे अधरों पर कैसे सजी है, हाय!हाय! प्रियतम श्यामसुन्दर कहाँ चले गए। मैं भी कैसी बाँवरी हो गयी आज, अपने प्राण संजीवनी को पुकारते पुकारते राधा राधा प्यारी प्यारी ही पुकारे जा रही हूँ। आह!!श्यामसुन्दर श्यामसुन्दर ......मेरे प्राण , मेरा जीवन,प्राणेश्वर, कहाँ चले गए मुझे छोड़। वेणु हाथ से छूट गयी और श्रीप्यारी के चरणों में गिर पड़ी। जैसे ही प्यारी में डूबे हुए प्यारे श्रीप्यारी के चरणों के पास पड़ी वेणु उठाते हैं , श्रीप्रियतमा के चरणों से उनका कर स्पर्श हो जाता है। सब विस्मृत हो चुका है कि वह प्यारे हैं या प्यारी हैं। एक क्षण नेत्र भर दृष्टि से प्यारी को देखते हैं पुनः हृदय व्याकुल हो पुकार पड़ता है प्यारी प्यारी.........जिस दशा में पहले वेणु उठा आरम्भ किये थे पुनः पुनः उसी दशा में डूबते जा रहे हैं। अपनी प्राणेश्वरी के नाम क़ो पुकारने का भी लोभ कहाँ छोड़ पाते हैं, प्यारी प्यारी प्यारी.........

जय जय श्रीराधे

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