माया को दासा

हरिहौं हम माया कौ दासा
कोऊ बल न हमरौ नाथा भव ताप कौ होवै नासा
भजन हीन लौटत जग वीथिन  न कोऊ प्रेम पिपासा
न जप तप भजन बनै कछु हिय माया को वासा
नाचत नाचत थकत जन्मन सौं हिय भरी भारी निरासा
हा हा हरि टेरत हूँ अबहुँ कीजौ मोय निज दासा

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