हरिहौं हम तोहे दिए बिसारी
हरिहौं हम तोहे दिये बिसारी
लोभ जगै षडरस कौ गाढ़ा उर लालसा भारी
जग वीथिन रैन दिवा डोले बुरी दसा हमारी
कौन भाँति होवै छुटकारा उम्र बीत गई सारी
हरिनाम न कबहुँ सुहावै बन्द राखी प्रेम किवारी
मूढ़े धिक धिक जीवन तेरौ सगरी दसा बिगारी
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