हरिहौं हम भोगी जन भारी
हरिहौं हम भोगी जन भारी।
निकट न कीन्हो दूर भजायो देयो मोहे निकारी।।
कौन सौं जाकर अर्ज सुनाऊँ जी मैं मूढ़ा दुखियारी।
तुम न राखो कौन राखे हरि मोय न देयो बिसारी।।
पतितपावन काहे नाम धरायो जो काहे न बात बिचारी।
मेरौ कौन ठौर होय नाथा हाय जन्म जन्म बिगारी।।
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