वेणु नाद
*वेणु नाद*
यह वेणु नाद जो छिड़ गया है, समस्त निकुञ्ज को प्रेम रस से आप्लावित कर रहा है।यह वेणु नाद प्रियतम हृदय की प्रेम राशि अधर सुधा से वेणु के एक एक रव में फूंक रहे हैं।है क्या यह पुकार यह वेणु नाद।
*प्रियतम हृदय की पुकार यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का संवाद यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का आह्लाद यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का उन्माद यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय की तृषा यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय की अर्चा यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का राग यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का अनुराग यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का गीत यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का संगीत यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का सुखसार यह वेणु नाद*
*प्रियतम हृदय का आधार यह वेणु नाद*
यह वेणु नाद उनकी प्राण स्वरूपा श्रीराधा का नाम सुना रहा है। अखिल कोटि ब्रह्मांड नायक अपनी प्राणेश्वरी की अर्चना इस वेणु नाद से करते हैं। अपनी स्वामिनी का नाम पुकारने में भी अक्षम हो रहे हैं तो वेणु के रव रव से अपनी प्यारी स्वामिनी की अर्चना कर रहे हैं। उनके हृदय का आह्लाद, उन्माद इस वेणु के रव रव में भर रहा है। एक ही नाम सुनाती है यह वेणु प्यारी प्यारी प्यारी प्यारी.........श्रीराधा......
समस्त राग रागनियां श्रीप्रियतम के इस नाद में सेवायत होने को उन्मादित हो रही हैं। अपनी प्राणा स्वामिनी जु का नाम ही तो सबके हृदय की प्राण राशि है। जहाँ कण कण उनके प्रेम का मूर्तिमान स्वरूप है , वहीं कण कण तृषातुर भी है। समस्त तृषाएँ जैसे प्रियतम हृदय में समा चुकी हैं , उनके हृदय से उठ रही एक एक तृषा इस वेणु के रव रव में प्रकट हो रही है। उनकी आह्लादिनी, उनकी सकल सुखराशि, उनकी परमेश्वरी, सर्वेश्वरी का नाम ही तो वह स्वास स्वास से भजते हैं इस वेणु नाद में।
ब्रजेंद्रनंदन अपनी प्रियतमा अपनी प्राणवासिनी नित्यनिकुंजेश्वरी के प्रेमाधीन होकर निरतंर उनका भजन करते हैं इस वेणु नाद द्वारा। इसी पूजा अर्चना द्वारा कण कण में प्रेम रस तरँगों से जीवनशक्ति का संचार करते हैं।यह नाम तो उनके प्राणों की गूंज हो चुका है। प्यारी.....पया......री प.......या....... री.......श्रीराधा .......
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