हरिहौं कबहुँ प्रीत

हरिहौं कबहुँ प्रीत लगाती साँची

नाम विहीना फिरै बाँवरी व्यर्थ ज्ञान रही बाँची

व्यर्थ करै बकवाद क्षण क्षण कौ हरिप्रेम न राँची

साँचो होती प्रीत कबहुँ तेरी  रही काँची की काँची

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून