बाँवरी पर उपदेश कुशल
बाँवरी पर उपदेश कुशल बहुतेरी
पतित अधम जन्म जन्म की कबहुँ हरिनाम न टेरी
कौन विध तेरौ होय छुटकारा कटे जन्मन कि फेरी
कौन समय सेवा सुख पावै होय युगल चरण चेरी
अहंकार ठूस ठूस भर राखयौ करत रहे मेरी मेरी
अभागन रही जन्म जन्म सौं ब्रज वीथिन न हेरी
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