अपने अश्कों से

अपने अश्कों से फिर मैंने इक कहानी  ही लिखी
वफ़ा की उम्मीद न हो मेरी बेवफाई निभानी ही लिखी

सच तो है इश्क़ मुझे तुमसे कभी हुआ ही नहीं
बेवफाई है मेरी जो तेरे अश्कों को पानी ही लिखी
अपने अश्कों.........

न देखा किस हद तलक है गहरा इश्क़ तेरा मुझसे
तुमको बेवफा सदा से और खुद को दीवानी ही लिखी
अपने अश्कों.......

अब मुझे एहसास हुए सब मेरी बेवफाई के ही
कैसे कैसे तुमको पागल और खुद को सयानी ही लिखी
अपने अश्कों.......

अब नज़र उठती ही नहीं किस तरह देखूँ तुमको
बेहयाई की सब यादें अपने पुरानी ही लिखी
अपने अश्कों......

मेरे महबूब अब और न यूँ इश्क़ कर अब मुझसे
न काबिल ए इश्क़ हूँ मुझसे उम्मीद भुलानी ही लिखी
अपने अश्कों.......

झूठे से अश्क़ ही बहते हैं अब भी आंखों से मेरी
और तेरे हिस्से में इश्क़ की हर कुर्बानी ही लिखी
अपने अश्कों से फिर मैंने इक कहानी  ही लिखी
वफ़ा की उम्मीद न हो मेरी बेवफाई निभानी ही लिखी

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