हरिहौं पतितन कौन सम्भारै
हरिहौं पतितन कौन सम्भारै
जन्म जन्म की जड़ता भारी कौन विध नाम उचारै
कीन्हीं न कबहुँ प्रीति साँची पुनि पुनि जन्म बिगारै
हा हा खात पड़ीं बाँवरी नाथा बिलपत तेरे द्वारे
तुमहीं नाथ होय मेरौ साँचो जन्मन दिए बिसारे
तुम्हरे किये सब होवत नाथा हमहुँ हर विध हारे
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