कुछ यूं
[23/05, 08:51] Amita: हम ढूंढने तो निकले तेरे निशां
नहीं जानते थे क्या हशर होगा
हर निशां को छूते ही साहिब मेरे
तेरे ही इश्क़ को यूँ सज़दा होगा
[23/05, 08:54] Amita: हमको कहाँ समझ रही कुछ यूं बेखुदी हुई तेरे इश्क़ की
तुम ही उतर गए कुछ पल मुझे जीने को हमसफ़र मेरे
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