मुझमे उतरती है

मुझमें उतरती है मोहबत तेरी ही तो तुमको महसूस करती है
मुझमें मेरा वजूद लौटकर ही मेरे जिंदा होने की वजह तलाशता है

गर एहसास न होता तेरे इश्क़ का हमको
तेरी ही मोहबत यह कैसे गवारा करती
जो न मिलते तुम मिलकर भी कभी यूँ हमको
तेरे बिना फिर कैसे मोहबत गुजारा करती

क्या तेरा एहसास ही प्यास है तेरी
रूह तलक तेरे लिए प्यासी हुई जाती है

तुम ही इश्क़ तुम ही इबादत मेरी
तुम ही तुम बन जाओ चाहत मेरी
काश तुमसे इश्क़ कर पाऊँ मैं तुम्हारे जैसा
तुम ही बन जाओ कुछ ऐसी आदत मेरी

काश तेरा एक एक नाम मेरी सांसों पर लिखा रहता
क्यों तेरे नाम बिन आती सांसों को इजाज़त दे रखी है

इश्क़ का इल्म नहीं मुझे बस इतना जानती हूँ
मुझमें जो उछलता है साहिब वो इश्क़ तेरा है

तेरा इश्क़ तेरे अल्फ़ाज़ और कलम भी तेरी
मुझमें मेरे होने का एहसास क्यों है फिर

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