हरिहौं प्रीत न साँची लागी
हरिहौं प्रीति न साँची लागी
हिय रह्यौ बाँवरी प्रेम विहीना जन्मन गये अभागी
गाढ़ रस रह्यौ भोगन कौ बाँवरी न भव निद्रा त्यागी
कौन भाँति हिय प्रेम रस उमगे जग सौं फिरै वैरागी
जन्मन खोवत रही बाँवरी कबहुँ निद्रा सौं जागी
भज ले अबहुँ नाथा साँचो रहे प्रेम रँग माँहिं पागी
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