न कर मोसे
न कर मोसे प्रेम कन्हाई नित नित उलाहने दूँ तुमको
अब न आना मेरी गली तुम अब न कुछ कहूँ तुमको
ना मैं माखन मिश्री सी मीठी हूँ कड़वी कुछ खारी जी
नहीं लगाना हृदय यहाँ कभी बात बने न तुम्हारी जी
क्यों मेरी गली तुम आवो नित नित सुनने ताहने जी
क्या तुमको मीठे लगते हैं कड़वे मेरे उलाहने जी
हृदय मेरा है प्रेम विहीना कैसे तुम सुख पाओगे
अब नहीं आना पास मेरे तुम प्यासे रह जाओगे
प्रेम नहीं हृदय में मेरे नित्य करूँ तुमसे झगड़ा
नहीं फोड़ना मेरी मटकी कलह करूँ तुमसे तगड़ा
देखो कन्हाई अब हट जाओ अब न तुमसे बोलूंगी
प्रेम है कितना तेरे हृदय में अब मै नहीं टटोलूंगी
कैसे रूठूँ तुमसे प्यारे मुझे ये भी अधिकार नहीं
रूठती यदि प्रेम होता तुमसे ऐसा मेरा व्यवहार नहीं
मन की सुनती रही सदा से अब मन को हार चुकी
प्रेम भी तुमसे झगड़ा भी तुमसे तुममें स्वयं बिसार चुकी
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