विनती
राधा जु मोपे अबहुँ ऐसो ढुरो
युगलनाम रूप होयके मेरो जिव्हा नृत्य करो
उर अंतर आन बिराजो श्यामाश्याम मैं गाऊँ
दासी को अपनी कर लीजौ सेवा को सुख पाऊँ
सेवाहीन होऊँ मैं लाडली एहो दुःख होय अपार
ओ ! वृषभान किशोरी नेक मेरी ओर निहार
मेरी ओर निहार निशदिन श्यामाश्याम रटू
पड़ी रहूँ तेरे द्वार किशोरी एक क्षण नाय हटूं
जिव्हा मेरी रटे निरन्तर कबहुँ श्यामाश्याम
तुव चरणन ही ठौर मेरी कबहुँ मिले बिसराम
Comments
Post a Comment