नाम विहीना
नाम विहीना रह्यो नित चौपाया सों जन्त
खाय पीवै रमत रहवै हरि कबहुँ न भजन्त
तोसे तो कूकर भलयो छाडे न खसम को द्वार
निस दिन चौखट पड्यो रहे खावै जितनी मार
सूकर सों प्यारी लगे विष्ठा जगत को खावै
नाम विहीन रहे बाँवरी कबहुँ न हरि गुण गावै
श्वास श्वास व्यर्थ होय रह्यो अबहुँ कीजौ सम्भार
छाड़ देय आस जगत को हरि को नाम उच्चार
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