नैन भिगोये

नैन भिगोये बैठी बिरहन किस विधि हृदय समझावे
जाने जीवन की पतझड़ बीते कब बसन्त ऋतु आवे
कब प्रियतम के पीताम्बर की छवि नैन भर दर्शे
कब प्रियतम बाहुपाश में नित्य आलिंगित हर्षे
प्रानप्रिय बिन सूनी बसन्त हाय सूनी मांग धरावे
कौन घड़ी आवे मेरे प्रियतम पुनः पुनः हिय अकुलावे
हाय प्रियतम तुम बिन रुदन करूँ कैसा मेरा बसन्त
प्रियतम मिले तो सुख होवे होय विरह क्लेश को अन्त

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