17

जय जय श्यामाश्याम

विरहणी तितली 17

तितली दोनों सखियों की वार्ता सुन अश्रु बहाती हुई अश्रुपात करती है तथा गौशाला की और उड़ जाती है। संध्या का समय है सभी गईया बछड़े वन से लौटकर आ चुके हैं। गोप कुमारों ने सबको उनके यथोउचित स्थान पर छोड़ दिया है। कान्हा के मथुरा जाने के बाद गौशाला में जैसे सभी गइयाँ बछड़े प्राणहीन से पड़े हैं। न कोई गईया ठीक से चारा खाती है न कोई बछड़ा दुग्ध पान करता। सभी अपनी उछलकूद भूल चुके जैसे। कजरी, धौली, घुमरी जो नित्य श्यामसुंदर के संग अठखेलियाँ करती निष्प्राण सी हुई पड़ी हैं। कान्हा के जैसा लाड दुलार कौन करे? गोप कुमार नित्य उनकी उसी विधि से सेवा करते हैं परंतु ये तो वह भी जानते हैं कि जो प्रेम , जो सुख इनका गोपाल श्यामसुंदर के संग बना था , उसकी कल्पना मात्र भी प
पूर्ति न कर सकते वह। वह भी रुदन करते हुए अपने सखा , अपने स्वामी , अपने मोहन की स्मृति में ही कोई भी कार्य सम्पादित कर रहे हैं। परंतु क्या करें लीलाधारी की लीला के आगे सब नतमस्तक हैं। जिस प्रकार श्यामसुंदर को सुख हो। तितली घूम घूम कर गौशाला में सभी ओर देखती है।

   तभी अचानक मैया यशोदा कान्हा को पुकारती हुई गौशाला में आ गयी है। अभी तक हृदय से स्वीकार नहीं कर पाई कि उसका लला यहां नहीं अब। कान्हा ! कान्हा ! लला ! कहाँ हो तुम ?हाय ! इस वात्सल्य मूर्ति को कौन स्मरण करवाये कि इसका लला यहां नहीं है अब। हाय ! क्या कान्हा अब पुनः लौटकर न आएंगे ?सबके हृदय में एक ही प्रश्न है। अब कौन इस ममता के सागर को बहने से रोके, कान्हा का वियोग तो इस वात्सल्य सिंधु में ज्वार भाटा ही ले आयेगा। सभी गोप अपना मुख छिपा इधर उधर हो रहे हैं , किसी से तो अपनी पीड़ा संभाली भी न जा रही , जैसे कैसे एक दूसरे को सम्भाल रहे हैं। मैया की बात सुन एक बार तो कजरी गाय कान खड़े करती है, जैसे वह भी भृमित हो गयी कि श्यामसुंदर तो यहीं है , परन्तु शीघ्र ही स्मरण हो उठता है तो निष्प्राण सी हो गिर जाती है। वन में भी गईया न तो चरती है न ही जल पीती है, जैसे कान्हा के सखा बेसुध से होकर पड़े रहते हैं उसी प्रकार इनका हाल है। कोई किसी से कहे भी तो क्या ? एक गोप मैया का हृदय रखने को कहता है मैया ! कान्हा तो आँगन की ओर दौड़ गया है, एक क्षण भी न रुका यहाँ, आज बहुत भूख लगी थी उसे , वन में भी भरपेट न खाया आज। इतना सुनते ही जैसे इस वात्सल्य सिंधु में तरंगें उठने लगी। मैया तुरन्त आँगन की ओर दौड़ गयी। तितली ने तो उस गोप की आँखों से बहते हुए अश्रु देख लिए, किस प्रकार उस भोली माँ को ये ममता भृमित किये हुई है।

    मैया तुरन्त अपने लला के खाने के लिए भोजन सामग्री एकत्र करती है तथा कान्हा और उसके सखाओं को पुकारने लगती है। मधुमंगल जो कान्हा का प्रिय सखा है जो उसके हाथ से भी छीनकर खाने को आतुर रहता है , जिसकी क्षुधा का कोई अंत नहीं है , आज उसे भोजन की ओर देखने में भी पीड़ा है। हाय ! क्षुधा तो प्रेम की थी न , जिंसके स्पर्श से ये निर्धन ब्राह्मण नित्य प्रति राजभोग का आनन्द लेता था। अब सखा ही सँग नहीं तो भोजन भी किस प्रकार गले से नीचे उतरे। मैया को आज जैसे सुधि ही न है तुरन्त भोजन सामग्री के कई थाल मधुमंगल और शेष सखाओं के समक्ष रख दिए हैं। एक गोप बालक को ही कान्हा समझ रही है और उसी पर अपना वात्सल्य सिंधु उड़ेल रही है। माँ के हृदय की ममता देख जैसे आज सभी उस गोप को कान्हा मानने को विवश हो उठे हैं और माँ के सुख के लिए अभिनय कर रहे हैं।

क्रमशः

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