एक प्रेममयी लीला

श्यामाश्याम की एक प्रेममई लीला
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  श्यामा बहुत समय से श्याम जु की प्रतीक्षा में हैं। सखियों ने आज ऐसा अद्भुत श्रृंगार किया है कि प्रिया पुनः पुनः इस बात से आनन्दित हो रही है कि श्यामसुंदर को सुख होगा। युगल का प्रेम तो नित्य ही नवायमान रहता है परंतु सखियों की चेष्ठा सदैव अपने युगल का सुख सम्पन्न करने की रहती है। इसलिए सखियों ने आज पुनः श्यामा जु को नवल दुल्हन के रूप में श्रृंगार किया है। श्यामसुंदर के विलम्ब करने पर श्यामा और अधीर हो जाती है तथा पुनः पुनः द्वार की ओर देखती है। जैसे ही श्यामसुंदर प्रवेश करते हैं उनकी दृष्टि श्यामा पर पड़ती है।

     श्यामसुंदर अपनी श्यामा को निहार रहे हैं। निहारना भी क्या है जैसे नेत्रों से पी रहे हैं। एक टक देखने पर भी जैसे उनको तृप्ति न हो रही, हो भी कैसे सकती है। श्यामा कभी लजा जाती है तो नैन झुका लेती है, परन्तु झुके हुए नैन भी पुनः उठते हैं और श्यामसुंदर को चोरी चोरी निहारते हैं। श्यामा के मुख पर मृदुल मुस्कान आ जाती है, नैनों के नैनों से टकरा जाने पर पुनः नेत्र नीचे कर लेती है। दोनों ओर से ही प्रेम का महासागर लहरा रहा है।  

    श्यामसुंदर श्यामा को अंक में भर लेते हैं। मिल्न की इस स्थिति में रस बांवरे एक दूसरे में घुलने को , समा जाने को व्याकुल हो रहे हैं। श्यामा के मुख से श्यामसुंदर ! प्राणवल्लभ ! प्राणेश ! समबोधन सुन श्यामसुंदर अति प्रसन्न हो रहे हैं। एक दूसरे को सुख देने में ही दोनो सुखी हो रहे हैं। आहा ! युगल आनन्द में हैं , परन्तु श्यामा जु की स्थिति विचित्र होने लगती है। श्यामा के नेत्र मूंदे हुए हैं , परम् रसमयी स्थिति में श्यामा जु पुनः पुनः हँसती है और उच्चारण करती है श्यामा ! श्यामा ! श्यामा ! ......  । बहुत समय तक हँसती रहती है , नेत्र मूंदे हुए हैं और नेत्रों की कोर से अश्रु बह रहे हैं तथा मुख से श्यामा , श्यामा ही पुकार रही है। श्यामसुंदर अपनी प्रिया की इस अवस्था को देख पुनः पुनः बलिहार हो रहे हैं।

  जय जय श्यामाश्याम

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