अश्रु विरह
अश्रु ....विरह ....व्याकुलता ......पुकार.....
ओ सखी ! तू कहती है मैं रो रही हूँ तो प्रियतम मुझे प्रसन्नता पूर्वक निहार रहे हैं। हाय ! उनको यदि मेरे एक भी अश्रु से सुख हो तो , हे विधाता ! मेरे इन नैनों में अनन्त कोटि अश्रु सदा प्रवाहित होते रहें। अश्रुओं का महासागर रूप हो जाये सखी मेरा उस महासागर में जो लहरें उठती रहें उससे मेरे प्राणधन को सुख हो।
यदि उनका सुख विरह में है , तो मै मिल्न की इच्छा क्यों करूँ री। मैं तो निर्लज्ज ठहरी, मैंने केवल अपने सुख की ही कामना की। हे विधाता ! यदि मेरे प्रियतम का इसी में सुख हो तो मुझे अनन्त जन्मो का विरह मिले। इस विरह की तप्त अग्नि में सदैव तापित रहूँ सखी , केवल यही आशा मेरे हृदय को सुख दे कि मुझसे किंचित मात्र भी मेरे प्राणधन को सुख हो रहा है।
ओ सखी ! यदि उनको मेरे हृदय की व्याकुलता ही देखनी हो , मुझे एक क्षण भी संतोष न हो। मुझे अपने सुख का कोई साधन न चाहिए सखी । मेरे प्रियतम का सुख ही सदैव मेरा सुख हो। मैं सदा इसी व्याकुलता से पीड़ित रहूँ सखी यदि इससे उन्हें तनिक भी सुख हो।
मेरे हृदय में ये जो प्रियतम के लिए पुकार उठती है यदि ये पुकार यदि उनको मीठी लगे तो सखी मैं सदा सदा यूँ ही पुकार लगाती रहूँ। मेरी पुकार अनन्त युगों तक रहे। हृदय से केवल एक ही पुकार उठे , मेरे प्रियतम ! मेरे प्रियतम !
से विधना ! मुझे केवल इतनी आशीष दो , मैं अपने प्रियतम को अनन्त काल तक सुख दे सकूँ। यदि ये अश्रु , विरह, व्याकुलता और ये पुकार ही उनके प्रेम का प्रतीक है तो मुझे इसी से सुख हो।
नित्य नित्य यूँ बहें अश्रु प्रियतम
तेरा सुख कहें निशदिन प्रियतम
ये विरह वेदना सदा रहे प्रियतम
जो सुख तेरा सदा कहे प्रियतम
हृदय सदा रहे व्याकुल प्रियतम
यदि बने तेरे अनुकूल प्रियतम
नित्य नित्य उठे पुकार प्रियतम
यदि तुझको हो स्वीकार प्रियतम
मेरा हृदय तेरा नाम रटे प्रियतम
कभी मुख से नहीं हटे प्रियतम
मेरे प्रियतम मेरे प्रियतम ........
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