नित्य निकुंज

नित्य निकुंज युगल संगिनी और क्या आशीष चाह्वे
नित्य नित्य सेवा सुख पावै दासी होना चाह्वे
नित्य ध्यान धरे युगल चरण को नित्य निकुंजन जावै
मुख ते और कोऊ नाम नाय निकसे राधा राधा गावै
सखी री तू बड़भागिनी जो युगल की सेवा पावै
मो सम पातकी कौन होय मुखते कबहुँ नाम न आवै

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