बसन्त ऋतू

सखी री आज बसन्त ऋतु आई पिय पे तन मन वारुंगी
लेय गुलाल अबीर और चन्दन भर पिचकारी मारूंगी
भीग जायेगो प्रेम रस पिय पुनः पुनः भर नैन निहारूँगी
चतुर पिय संग फाग मैं खेलूँ खेलत कबहुँ न हारूँगी
भर भर मारूँ सखी नैन पिचकारी प्रेम रंग उछारुंगी
रंग रंगीलो सखी पिय मेरो तोहे प्रेम रंग रंग डारूँगी

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