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जय जय श्यामाश्याम
विरहणी तितली 9
श्री प्रिया जु की ये दशा इस तितली से देखी न जा रही। तितली ने देखा श्यामा जु के पास इनकी सखियाँ आ गयी हैं अभी इन्हें सम्भाल ही लेंगी , यशोदा मैया के पास चलती हूँ। जानती है सब माँ का हृदय क्या होता है , उस वात्सल्य रस मूर्ति पर न जाने क्या बीत रही होगी, बहुत कठिन है पर मुझे जाना ही होगा। किसी प्रकार अपने हृदय पर पत्थर रख ये नन्दभवन की ओर उड़ चली। हृदय तो पहले से ही व्याकुल है परंतु मार्ग में जाते हुए भी कितनी पीड़ा हो रही ये तो विरहणी तितली ही जानती है।
मार्ग में उस बुढ़िया मौसी का घर पड़ा जो नित्य कान्हा से गोबर उठवाती थी और उसे डंडे से भी पीटती थी। तितली क्या देखती है बुढ़िया मौसी की देह निष्प्राण पड़ी है। उसके प्राण तो श्यामसुंदर के प्रेम से बंधे हुए थे जिस क्षण ब्रजराज कुमार का रथ ब्रज से बाहर हुआ , उनको स्पर्श करती वायु से ही वृद्धा के प्राण चल रहे थे जैसे, उसी क्षण प्राण देह त्याग कर सदा के लिए अपने लला के साथ ही चले गए। इसकी देह के इर्द गिर्द बैठी ब्रज गोपियाँ विलाप कर रही हैं। तितली कुछ क्षण इनके प्रेम की गहराई देखती है फिर वृद्धा के चरण स्पर्श करती हुई अश्रु पूरित नेत्रों से उसकी निष्प्राण देह को निहारती है। कभी मेरे प्राण वल्लभ श्यामसुंदर ने भी इसे ऐसे ही निहारा होगा। सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी अपना ऐश्वर्य छिपाये ऐसे बैठा है कि प्रेम बस होकर नित्य गोबर भी उठाये और डंडे भी खाए। हाय ! श्यामसुंदर तुम्हारा प्रेम कितना अद्भुत है। कैसे बिक जाते हो तुम प्रेम में। जहां तितली इस वृद्धा माँ को निहारती हुई अश्रु बहाती है वहीं प्राण धन श्याम सुंदर की प्रेम अभिलाषा पर भी बलिहार जाती है। मेरे प्राणधन की लीला वही जानें ।
बहुत कठिनाई से आगे बढ़ती है तो देखती है एक किशोर व्यस गोपी उन्मादित सी हुई भागी जा रही है। मेरे श्यामसुंदर आ गए, मेरे कान्हा आ गए। हाय ! एक क्षण को तितली के प्राणों में प्राण लौटते हैं परन्तु शीघ्र ही देखती है कुछ लोग इस उन्मादिनी के पीछे दौड़े जा रहे हैं। तितली भी उनके संग हो लेती है मन में इसी आशा से कि देखूं शायद प्राण वल्लभ लौट आये। परन्तु उसे ज्ञात होता है ये बालिका प्रेम विरह में उन्मादिनी हो गयी है। जब से श्यामसुंदर गये हैं थोड़ी थोड़ी देर पश्चात उस मार्ग पर दौड़ जाती है फिर इसे पकड़कर वापिस लाना पड़ता है। तब से इसकी यही दशा है। तितली पुनः नन्दालय की ओर उड़ती है।
तभी इसे कोलाहल सुनाई देता है। ये कोलाहल यमुना की ओर से आ रहे मार्ग पर होता है। तितली देखती है एक किशोरी की देह उठाये कुछ लोग यमुना की ओर से आ रहे हैं। श्यामसुंदर के जाने के पश्चात ये कल से अप्रकट हो चुकी थी। आज इसकी निष्प्राण देह यमुना के किनारे मिली। हाय !श्यामसुंदर ये तुमने क्या किया। तितली की स्वयं की भाव दशा बदलती जा रही है। कुछ क्षण पहले ये प्राण वल्लभ की प्रेम तृषा पर बलिहार हो रही थी अभी उन्हें निष्ठुर भी कह गयी। भीतर की पीड़ा की पुनः स्मृति हो आई है कि प्राण धन अब संग न रहे। कितने निर्मोही हो कान्हा तुम, मैं तो एक छोटा सा कीट जिंसके जीवन का कोई मूल्य भी नहीं। वृद्धा मौसी भी जीवन के पिछले पड़ाव में थी , परन्तु ये नवयौवना। हाय ! ये कली तो तुम पर प्राण न्यौछावर कर गयी। अभी जाने कितनी और पीड़ा देखनी होगी। हे विधना! मुझे पंखहीन ही बना दे। मुझे पत्थर ही कर दे जिस मार्ग से मेरे प्राणधन मथुरा गए उस मार्ग पर पड़ी रहूँ सारा जीवन । अपने प्रियतम की चरण रज में ही रहूँ। परन्तु ऐसा मेरा सौभाग्य कहाँ। मुझे कैसे भी नन्दभवन तो पहुंचना ही है। कठिनता से अपनी प्राणशक्ति को एकत्र करती हुई तितली नन्दभवन की ओर उन्मुख हुई।
क्रमशः
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