कुछ ऐसी नज़र
कुछ ऐसी नज़र करना प्यारे
मैं खुद को ही भूल जाऊँ
कोई पूछे जो पता कभी मेरा
मैं तेरा पता ही फिर बताऊँ
तू रहे इस कद्र मुझमें ही
मैं खुद को न खोज पाऊँ
गर हो मुमकिन ऐसा कभी
बस तुझको न कभी भुलाऊँ
अभी तुझसे इश्क़ कहाँ हुआ
काश कभी इश्क़ कर मैं पाऊँ
अभी तो दुनिया ही कोई और मेरी
बस तुझसे अब मुंह अपना छिपाऊँ
Comments
Post a Comment