आयो न सखी

आयौ न सखी अजहुँ श्याम पिय दुखन लागे नैन
ऋतु बसन्त मोरा जिय जरावै कौन सुने मोरे बैन
कोयल की कूक नाँहि भावै विरहन की सुनि लीजौ
देह नाँहि राखूँ अबहुँ प्राण हाय मोहन विलम्ब न कीजौ
कौन देस पिया जाये बैठे बिरहन नाम तेरा ही टेरे
तुम बिन हिय की पीर न जावै प्राणधन आवो मेरे

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून