बना दूँ
जो सुकून हो तुझे मेरे अश्कों से कभी
तो मैं अश्कों के समंदर ही बना दूँ
जो खुश हो तू मुझे सुलगता देखकर
पल पल तेरी याद में खुद को जला दूँ
दिल से मत छीन लेना कभी तड़प ऐसी
जख़्म दर जख्म दे मैं खुद को तड़पा दूँ
ये रूह तो बिक ही चुकी है नाम तेरे ही
ग़र तू चाहे तू मैं इस दुनिया को बता दूं
बस मुझे अपने इश्क़ वाली तड़प देते रहना
तुझको ही याद रखूँ बाक़ी दुनिया को भुला दूँ
रोज़ सुलगती ही रहूं गीली सी लकड़ी माफिक
यूँ जल जल कर घर तेरा थोड़ा रोशना दूँ
तू बता दे जिस तरह कुबूल हो तुझको
मैं खुद को फनाह कर वैसा ही बना दूँ
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