जो तुम माधो

जो तुम माधो भक्तवत्सल तो मै भक्ति न कीन्हीं
नहीं जप तप कोई पूजा मेरी नाम न तेरो लीन्हीं
जो तुम दीनदयाल माधवा तो दीन नहीं मै नाथा
लोभी कुटिल कामी मैं पातक अबहुँ मोहे करो सनाथा
तुम पतित पावन और मैं पतित इहो सत्य मेरो मनमोहन
पतित को अपनी शरण माँहि लीजौ दीजौ मोहे नामधन
शरणागत की सुधि लेवन वारे कैसो शरण मैं आऊँ
नाथ पाप कियो बहु जन्म ते ताहीं सों मुख ये छिपाऊँ

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून