बहुत जन्म ते बिछुरै

बहुत जन्म ते बिछुरै माधो तुम सों प्रीत न लागी
लिप्त रहूँ सदा विषयन माँहि नहीं तव चरण अनुरागी
भोग लालसा मद मत्सर हे हरि कबहुँ क्षण न त्यागी
तुमसों नेह लगाऊँ कैसो मेरो हृदय ना होय बैरागी
तुमसों मुख छिपाय रही नाथ मैं मूढा अधम अभागी

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