कबहुँ न देख्यो
कबहुँ न देख्यो मैली अखियन ते मोहन तेरी सुरतिया
याते अंध जनती मोहे जननी जड़वत कोई मुरतिया
बाहर फाग का उत्सव पर हिय मेरो पतझड़ होवै
बाँवरी तू रही बाँवरी नित रोय रोय नैन भिगोवै
छांड देय आस समुझाए लेय हिय कामी जन पावै विष्ठा
नहीं रह्यो तृणवत कबहुँ कोऊ आचरण भुखयो मान प्रतिष्ठा
लोभ मद मत्सर होय हिय माँहि युगल कहाँ तू बैठाय
समझ बूझ औकात देख अपनी बाँवरी युगल किस विधि पाय
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