कुछ भी आराम न
कुछ भी आराम न देता इस दिल को
जब से तेरा नाम सुन लिया है जिसने
देख और न कर मजबूर मुझे अब
दिल लेकर ही जान भी ले ली तुमने
मुझको बेकार सा सा लगता है जहां सारा
काश कोई जीने की वजह मिल जाए मुझको
दिल के थोड़े से जख्म लिखे बस
तुम कहते हो थोड़ा सा सजा दो इसको
जख्मों से बस खून ए दिल रिस्ता है
फिर भी कम्बख्त मौत क्यों नहीं आती
मुझको खामोश ही करदो हुज़ूर मेरे
गुस्ताखियां करना तो मेरी आदत ठहरी
क्यों कलम दे दी मुझे दर्द कहने वाली
तेरी मोहब्तों को तो न कभी लिखा मैंने
तेरे बिना जो आ रही आखिरी सांस हो मेरी
चल महबूब मेरे सांसों की गिनती कम है
देख मेरे दर्द पर भी हंसते हैं लोग
तेरे इश्क़ ने आज फिर रुस्वा किया मुझको
दर्द ही दर्द है मेरे पास तुझे क्या दूँ बता
चल अपने भी सारे दर्द दे दे मुझको
दर्द ही दर्द है मेरे पास तुझे क्या दूँ बता
चल अपने भी सारे दर्द दे दे मुझको
काश इतने अश्क़ हों कि मै बह जाऊँ
मत पूछ क्या है वजह बेखुदी में कह जाऊँ
तू कहे तो सदा के लिए खामोश रहूँ
क्या करूँ ये कलम भी तुझसे मोहब्त कर बैठी
कोई हस ले दर्द की नुमाइश की मैंने
कुछ खुद से कुछ जमाने से खफा सी हूँ
देख हूँ न गुस्ताख़ मुझसे इश्क़ की उम्मीद न कर
इश्क़ का दर्द भी मीठा न लगा मुझको
मुझको भी खबर नहीं क्या लिख दिया साहिब
मेरे साथ रहकर जाने कलम क्यों रोती है
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