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जय जय श्यामाश्याम

विरहणी तितली 18

  मधुमंगल कहता है कान्हा ! आज तू मुझे अपने हाथ से खिला और मैं तुझे खिलाऊँगा। माँ के सन्मुख ऐसा अभिनय करना ही होगा न , उसकी भाव दशा ही कुछ ऐसी है। मधुमंगल अपने हाथ से उस गोप के मुख में भोजन डाल रहा है , और मैया से पुनः पुनः उसकी शिकायत करता है, देखो न मैया कान्हा मेरे सँग कैसे कर रहा है आज इसे इतनी उदर क्षुधा लगी है मुझे न खिला स्वयं ही पा रहा है। सखा तू मेरे सँग ऐसे खेल मत कर , मैया को तेरी शिकायत करता हूँ। देख देख मैया अपने लाडले को देख आज कैसी दशा हुई है इसकी।

  माँ की दशा कोई कैसे बखान करे, हँसकर दोनों के मुख में कौर डालती जाती है और देख देख रोने लगती है। एक घड़ी तो मधुमंगल को लग रहा है जैसे मैया को स्मरण हो आया कनुआ यहां नहीं है, परन्तु यह प्रेमाश्रु तो उस वात्सल्यमूर्ति के आनन्दातिरेक में प्रवाहित हुए। आनन्द की सीमा क्या है , अश्रु । जब वह आनन्द इतना भर गया तुम्हारे भीतर कि अब बह चला है नैनों की कोर से। आहा ! मैया तो वात्सल्य सिंधु में डूबी हुई है। उस प्रेम सिंधु के कुछ छींटें उन गोप बालकों पर उमड़ उमड़ पड़ रहे हैं। सभी मैया के आनन्द से आनन्दित हैं। तितली भी मैया की इस स्थिति को अनुभव कर अपने नैन भिगो लेती है। धन्य है ऐसी मैया और धन्य उसका प्रेम।

   अभी भी बस न हुई , कुछ समय पश्चात मैया पुनः उस गोप को गोद में बिठा लाड करने लगती है। कनुआ आज तुझे बहुत भूख लगी लला। चल तुझे अपने हाथ से पवा दूँ थोड़ा और। फिर उस बालक को शयन कक्ष में ले जाती है तथा उसे शैया पर लिटा उस पर नर्म सी मोटी कम्बली ओढा देती है तथा मैया दीवट पर मन्द प्रकाश का दीपक रख देती है। मैया उसी गोप पर जैसे अपना प्रेम सिंधु लुटा देगी आज। उसकी अल्कावली में उँगलियाँ डाल गा रही है।

सो जा प्यारे नन्द दुलारे
तोपे मैं बलिहारी हो
प्राणन ते भी प्यारा लागे
हँस हँस तोपे वारी हो

चन्द्र खिलौना लाय दूँ तोहे
नित मेरो लला खेले हो
प्रेम डोरी से बाँधू तोहे रे
न्यौछावर मैं सारी हो
सो जा.....

छोटो सो होय मेरो कनुआ
छोटी सी बाँसुरिया तेरी
मोहे प्राणन ते प्यारी लागे
छवि तेरो मोहन मुरारी हो
सो जा .......

आ तोहे आँचल में रखलूँ
बुरी नज़रिया नाय लागे
मेरो छोटो सो होय गोपाला
सब देख नज़र बिगारी हो
सो जा प्यारे नन्द दुलारे
तोपे मैं बलिहारी हो
प्राणन ते भी प्यारा लागे
हँस हँस तोपे वारी हो

कुछ क्षण पश्चात लला को सोया देख वहां पानी और कुछ फल तथा मिठाई दिये के पास रखकर लौट जाती है। गोप बालक मैया के जाते ही भाग जाता है वहां से। मैया थोड़ी देर बाद मैया पुनः आती है तथा मन्द प्रकाश में कम्बली को देख निश्चिन्त हो जाती है कि कान्हा सो गया है। तितली तो आज मैया के आनन्द से भर चुकी है परंतु उसकी स्थिति देख अपने अश्रु नहीं रोक पा रही।

क्रमशः

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